Iltutmish : ऐबक का पुत्र आरामशाह एक अयोग्य शासक था इस कारण अमीरों ने गद्दी से हटाकर इल्तुतमिश को गद्दी पर बैठाया| जिसे वापस पाने के लिए आरामशाह ने संघर्ष किया किन्तु इल्तुतमिश युद्ध में आरामशाह को पराजित कर गद्दी सुरक्षित रखा इल्तुतमिश गद्दी पर बैठने से पहले बदायूँ का इक्तेदार (सूबेदार) था, गद्दी बैठने के बाद ही इल्तुतमिश राजधानी लाहौर से स्थान्तरित कर दिल्ली ले आया| इल्तुतमिश (Iltutmish) को प्रथम इल्बारी शासक माना जाता है, इसे ही दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक माना जाता है|
इल्तुतमिश को था गुलामों से खतरा- iltutmish
मुहम्माद गौरी के गुलामों में से दो ऐसे गुलाम थे जिससे गुलामवंशी शासकों को हमेश खतरा रहता था| अतः इल्तुतमिश युद्ध कर इस खतरे को समाप्त किया|
- ताजुद्दीन याल्दोज
- नासिरुद्दीन कुबाचा
ताजुद्दीन याल्दोज –
ताजुद्दीन याल्दोज (गजनी शासक) जिससे की ऐबक को हमेशा खतरा रहता था गजनी पर अधिकार हेतु ख्वारिज्म शाह के साथ युद्ध हुआ जिसमें ताजुद्दीन याल्दोज पराजय हुई और भाग कर लाहौर आ गया| भविष्य में ताजुद्दीन याल्दोज से दिल्ली की गद्दी का कोई खतरा ना हो इसलिए 1216 ई० में हुए तराइन के तीसरे युद्ध में ताजुद्दीन याल्दोज को पराजित कर बन्दी बना लिया और बदायूं के किले में इसकी हत्या कर दी|
नासिरुद्दीन कुबाचा –
इल्तुतमिश नासिरुधीन कुबाचा को भी गद्दी के लिए खतरा मानता था अतः कुबाचा जोकि मुल्तान और सिंध के क्षेत्र में शासन करता था| इल्तुतमिश आक्रमण कर उन क्षेत्रों को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया| हार से हतास होकर नासिरुधीन कुबाचा सिन्धु नदी में कूद कर आत्महत्या कर ली|
मंगोलों आक्रमण
1221 ई० में ख्वारिज्म के शाह जोकि गजनी में शासन कर रहा था उसे चंगेज खां (मंगोल) पराजित कर गजनी पर अधिकार कर लिया| ख्वारिज्म का पुत्र जलालुद्दीन मंगबरनी इल्तुतमिश से सहायता मांगने के उद्देश्य से भागकर भारत आया इसी का पीछा करते हुए चंगेज खां सिन्धु नदी के किनारे तक आया| भविष्य में मंगोलों से दिल्ली की गद्दी पर कोई संकट ना हो अतः जलालुद्दीन मंगबरनी के राजदूत इयान-ए-मुल्क का वध करवा दिया|
मंगबरनी को सहयाता नहीं करने के कारण मंगोल दिल्ली पर आक्रमण नहीं किया इस प्रकार इल्तुतमिश दिल्ली को मंगोल आक्रमण से सुरक्षित रखा| मंगोलों से लड़ते हुए 1229 ई० में ही इल्तुतमिश के बड़े पुत्र नासिरुद्दीन महमूद की मृत्यु हो गया| जिस कारण इल्तुतमिश अपने जीवन काल में ही पुत्री रजिया सुल्तान को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया|
प्रशासनिक व्यवस्था
कुत्बी एवं मुइज्जी सरदारों के विरोध के कारण प्रशानिक व्यवस्था को चलाने के लिए अपने 40 वफादार तुर्क गुलामों का समूह तैयार किया जिसे बरनी (इतिहासकार) ने चालीसा या ‘तुर्कान-ए-चहलगानी’ कहा गया| जिसका प्रथम उल्लेख इसामी की पुस्तक फुतूह-उल-सलातीन में है|
- पहलीबार शुद्ध अरबी सिक्के चलाया
- चाँदी के सिक्के व ताम्बे के सिक्के चलवाया
- इल्तुतमिश को बगदाद के खलीफा ने सुल्तान की उपाधि प्रदान किया था|
- इसे दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक माना जाता है|
सीमा विस्तार
1226 ई० में में रणथम्भोर, जालौर (चौहान), बयाना, सांभर,अ अजमेर, नागौर को तथा गयासुद्दीन को पराजित कर बंगाल को पुर्णतः अपने अधीन कर लिया| 1236 ई० में बामियान शासक सेफुद्दीन हसन पर आक्रमण करने के उद्देश्य से जाते समय इल्तुतमिश रास्ते में बीमार हो गया और लौट कर दिल्ली आ गया| अंततः 30 अप्रैल 1236 ई० में इल्तुतमिश की मृत्यु हो गई|
इल्तुतमिश के उत्तराधिकारी
मंगोलों से लड़ते हुए इल्तुतमिश के बड़े पुत्र नासिरुद्दीन महमूद की मृत्यु 1229 ई० में हो गई और छोटे पुत्र रुकनुद्दीन फिरोज अयोग्य था| जिस कारण इल्तुतमिश (iltutmish) अपने जीवन काल में ही पुत्री रजिया सुल्तान को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया| किन्तु रुकनुद्दीन फिरोज (रजिया का भाई) जोकि एक अयोग्य शासक था अमीरों ने उसे ही गद्दी पर बैठा जिससे राज्य में विद्रोह हो गया| इसी का लाभ उठाकर रजिया अपने भाई को बंदीगृह में डाल दिया और खुद गद्दी पर बैठ गयी| हालाँकि इस खीच-तान के बीच ना तो रजिया और नाही रजिया था भाई दोनों में कोई भी लम्बे समय तक शासन नहीं कर सका|
इल्तुतमिश के बारे में – about iltutmish
इल्तुतमिश का वास्तविक नाम शमसुद्दीन इल्तुतमिश था और इसे प्रथम इल्बारी शासक माना जाता है| इल्तुतमिश, पूर्व शासक कुतुबुद्दीन ऐबक का दामाद व गुलाम भी था जिसे ऐबक ने 1 लाख जीतल में ख़रीदा था| इसलिए इल्तुतमिश को गुलामों का गुलाम कहा गया है क्योंकी ऐबक खुद भी एक गुलाम था और इल्तुतमिश उसका गुलाम| इल्तुतमिश धार्मिक रूप से सकीर्ण सोच का था इसने 1234-35 ई० में भिलसा के हिन्दू मंदिर तथा उज्जैन के महाकाल मंदिर को लुटा और विक्रमादित्य की मूर्ति को दिल्ली लाया|
इल्तुतुमिश ने इक्ता प्रणाली विकसित की| इक्ता स्थानान्तरणीय भू-भाग का राजसत अधिन्यास था जो नकद वेतन के बदले दिया जाता था| इल्तुतमिश पहला तुर्क शासक था जिसने शुद्ध अरबी सिक्के चलाये और टकसालों पर नाम लिह्वाने की परम्परा की शुरुआत की| चाँदी का टंका और (175 ग्रेन) ताम्बे का जीतल भी प्रारंभ किया| इब्बनबतूता लिखते है की इल्तुतमिश के महल के सामे संगमरमर के दो सिंह बने थे| जिसके गले में घंटियाँ लटकी होती थी जिन्हें खींचने पर फरियादी को तुरंत न्याय मिलता था|