Ghiyasuddin balban : सुल्तान बनने से पूर्व लगभग 20 वर्षों तक गियासुद्दीन बलबन (ghiyasuddin balban) के वजीर के पद रहा किन्तु सुल्तान के सभी शक्तियों का इस्तेमाल किया| इस प्रकार बलबन समय दर समय अपना कद बढाता गया और धीरे-धीरे सत्ता अपने हाथों में लेता गया अंततः एक समय बाद वह गद्दी पर बैठा| इसने एक नए राजवंश इल्बारी वंश या बलबनी वंश की नीव डाली| दिल्ली सल्तनत की सत्ता पाने के बाद गियासुद्दीन उपाधि धारण की अतः यह गियासुद्दीन बलबन के नाम से भी प्रचलित हुआ| इतिहासकार बरनी बलबन को जनता का पिता, नायक, एवं खुफिया कातिल कहा, कातिल इसलिए क्योंकि बलबन गुप्त रूप से अमीरों की हत्याएँ करवाता था|
Balban (बलबन) वैसे तो इल्तुतिमिश का गुलाम था लेकिन इसकी योग्यता से प्रभवित होकर इल्तुतमिश में इसे “खसदार” के पद पर नियुक्त किया| रजिया सुल्तान के शासनकाल में बलबन अमीर-ए-शिकार के पद पर नियुक्त था पर फिर रजिया के विरुद्ध षड्यंत्र में बलबन ने तुर्कों का साथ दिया| मुईनुद्दीन बहरामशाह के शासनकाल में अमीर-ए-अखनूर के पद पर था|
बलबन का सिद्धांत – ghiyasuddin balban ka sidhant
स्वंय को जिल्ले इलाही (इश्वर की छाया) और इस उपाधि सिक्कों पर भी अंकित करवाने वाला बलबन, उच्य वंशावली लोगों को ही उच्य प्रशासनिक पदों पर नियुक्ति में महत्त्व दिया| वहीँ सामान्य लोगों से घृणा करता था और उन लोगों से मिलना तक नहीं चाहता था| बरनी बलबन के बारे में लिखते हैं की “जब मै किसी तुछ्य परिवार के व्यक्तियों को देखता हूँ तो मेरे शरीर की प्रत्येक नाडी क्रोध से उत्तेजित हो जाती है|
ग्यासिद्दीन बलबन का राजस्व सिद्धांत “लौह एवं रक्त नीति” पर तथा प्रतिष्ठा शक्ति व न्याय पर आधारित था| बलबन के इस सिद्धांत विस्तृत विवेचना बरनी ने अपनी रचना ‘तारीखे-ए-फिरोजशाही’ में किया है| दरबार में शराव, नृत्य, संगीत, हँसी मजाक को बंद करवा दिया और दरबारीयों को विशेष वस्त्र (ड्रेस कोड) में आने का आदेश दिया|
ग्यासिद्दीन बलबन फारसी व्यवस्था से था प्रभावित
बलबन ईरानी (फारसी) व्यवस्था से अधिक प्रभावित था अतः शासन व्यवस्था ईरानी (फारसी) आदर्श के आधार पर आधारित की| और पौत्रों का नाम भी कैकुबाद, कैखुसरो, कयूमर्स आदि ईरानी नाम रखें| दरवार में गैर-इस्लामी प्रथाओं की शुरुआत की|
- सिजदा / जमीनबोसी (घुटने के बल बैठकर सुल्तान के समक्ष्य सर झुकाना)
- पायबोस (सुल्तान के पैर चूमना)
- नौरोज उत्सव मानना
सुल्तान की प्रतिष्ठा बढ़ने के लिए इल्तुतमिश द्वारा गठित चालीसा या ‘तुर्कान-ए-चहलगानी’ का दमन किया| सैनिक सेवा के बदले दी हुई जागीरों की जाँच कराई एवं अयोग्य सैनिकों को पेंशन देकर सेवा मुक्त कर दिया| नायब-ए-मुमलकात की पद को समाप्त कर दिया और वजीर के अधिकारों को भी काफी सिमित कर दिया| सामन्तों की गतिविधियों पर नजर रखने हेतु पहलीबार दीवान-ए-बरिद (गुप्तचर विभाग) की स्थापना की| दीवाने अर्ज (सैन्य विभाग) की स्थापना की स्थापना की व अहमद अयाज (इमाद-उल-मुल्क) को सेनाध्यक्ष नियुक्त किया|
प्रमुख विद्रोह –
बलबन के समय कई विद्रोह हुए जिसमे बंगला का विद्रोह अधिक महत्वपूर्ण है क्यों की बंगाल विद्रोह एकमात्र विद्रोह था जिसे बलबन दिल्ली से बाहर आकर दबाया| 1279 ई० में बंगाल सूबेदार तुगरिल खां विद्रोह कर दिया जिसे बलबन अपने पुत्र बुगरा खां के साथ दबा दिया| इसी समय बलबन, बुगरा खां से कहा था की “सुल्तान का पद निरकुंशता का सजीव प्रतिक है” बलबन का यह भी मानना था की सुल्तान का पद ईश्वर के द्वारा प्राप्त होता है और उसमे दैवीय अंश होता है|
मंगोल आक्रमण – balban ke samay hue mangol akrman
बलबन के पास विशाल सेना थी किन्तु मंगोल आक्रमण के भय के कारण सीमा विस्तार नहीं किया| मंगोल आक्रमण से बचने के लिए उत्तर-पश्चमी सीमा पर किलों की श्रंखला बनाई| बलबन सम्पूर्ण सीमांत प्रदेश को दो भागों में विभाजित कर दिया| सुनम, समान एवं उच्छ के प्रान्त को छोटे पुत्र बुगरा खां को तथा मुल्तान, सिन्ध व लाहौर बड़े पुत्र मुहम्मद खां को सौंपी| तैमुर खां के नेतृत्व में 1286 ई० में हुए मंगोल आक्रमण में मुहम्मद खां मारा गया| मृत्यु के बाद बलबन टूट गया हालाँकि दरबार में गंभीर व्यवहार रखता था| बलबन जोकि की अनुभवी था किन्तु पुत्र वियोग के कारण लगभग एक वर्ष बाद ही 1287 ई० में बलबन की भी मृत्यु हो गई|
अमीर खुसरो और अमीर हसन
अमीर खुसरो और अमीर हसन देहलवी, मुहम्मद खां की शरण में रहता था, पर मुहम्मद खां के मृत्यु के बाद बलबन के शरण में आ गया| अमीर खुसरो और अमीर हसन देहलवी (1253-1327 ई०) दोनों मुहम्मद खां के समय ही साहित्यिक की शुरुआत किया| अमीर हसन देहलवी उच्च कोटि का गजल लेखक था अतः देहलवी को ‘भारत का सादी’ कहा गया| महान फारसी कवि ‘शेख सादी’ को बलबन ने आमंत्रित किया था किन्तु अपनी वृद्ध अवस्था के कारण नहीं आ सका|
उत्तराधिकारी – ghiyasuddin balban ka uttradhikari
बलबन के मृत्यु के बाद कैकुबाद (बुगरा खां का पुत्र) गद्दी पर बैठा यद्यपि बलबन कैखुसरो को उत्तराधिकारी चुना था| कुछ समय बाद कैकुबाद को लकवा हो गया इस कारण अमीरों ने कैकुबाद के शिशु पुत्र को शमसुद्दीन कयुमर्स के नाम से गद्दी पर बैठाया था| लकवा होने के कारण तरकेश कैकुबाद को युमना नदी में फ़ेंक दिया| बलबन का दूसरा पुत्र बुगरा खां बंगाल के सुबेदारी से ही प्रसन्न था अतः गद्दी के लिए अधिक प्रयास नहीं किया| जलालुद्दीन फिरोज खिलजी कैकुबाद व कयुमर्स की हत्या कर गुलाम वंश को समाप्त कर, खिलजी क्रांति का सूत्रपात किया|
बलबन से जुड़े अन्य तथ्य
यह एक इल्बरी तुर्क था और इसका वास्तविक नाम बहाउद्दीन था| दिल्ली के कोतवाली फखरूद्दीन से बलबन सलाह लेता था| बलबन दिल्ली का प्रथम सुल्तान था जिसने वसैय्या (वसीयत) घोषित किया| वसैय्या को बरनी ने संकलित किया| इतिहासकार हबीबुल्लाह बलबन सुदृढ़करण का काल कहा है|