बंगाल में द्वैध शासन : मुगलों के शासन काल में प्रान्तों में दो प्रमुख अधिकारी होते थे एक सूबेदार और दीवान, सूबेदार (निजामत) का कार्य प्रान्त में पुलिस और कानून व्यवस्था की देख-रेख करना तथा दीवान का कार्य प्रान्त से राजस्व बसूली करना| ईस्ट इंडिया कंपनी 53 लाख रुपये वार्षिक दर से बंगाल की सुबेदारी (निजामत) और 26 लाख रुपये वार्षिक दर से दीवानी ले ली|
द्वैध शासन
क्लाइव ने इलाहबाद की संधि कर बंगाल में द्वैध शासन स्थापित किया क्योंकि वह बंगाल में कंपनी के सभी अधिकार तो चाहता था पर उत्तरदायी से बचना चाहता था| बंगाल की जनता कंपनी का विरोध ना करे इसलिए द्वैध शासन के अन्तर्गत कंपनी निजामत और दीवानी का काम भारतीय लोगों से करवाती थी किन्तु वास्तविक शक्तियों को कंपनी पास ही रखती थी| कंपनी बंगाल में मुहम्मद रजा खां, बिहार में शिताब राय तथा उड़ीसा में दुर्लभ राय को उपदीवान नियुक्त किया| इस प्रकार द्वैध शासन में दो-दो शासक हो गए एक कंपनी का और दूसरा नबाव| कंपनी के पास अधिकार तो था किन्तु लोगों के प्रति उत्तरदायी नहीं वहीँ नबाव के पास लोगों के प्राप्ति उत्तरदायी था आधिकार नहीं| अतः बंगाल में अराजकता व भ्रष्टाचार फ़ैल गया, व्यापर व उधोग धन्धे चौपट हो गई, गरीबी व भुखमरी छा गई|
इसी दौरान ही 1770 ई० में बंगाल में भयंकर अकाल पड़ा और करीब एक करोड़ लोग भूख से मर गए| इस समय कार्टियर बंगाल का गवर्नर था| कंपनी में बढे भर्ष्टाचार को कम कारने के लिए क्लाइव में कर्मचारियों को उपहार लेने व निजी व्यापार पर रोक लगा दिया| क्लाइव के समय मुंगेर और इलाहबाद के अंग्रेज सैनिकों ने दोहरे भत्ते को बंद किये जाने के कारण सामूहिक त्याग पत्र देने की धमकी दी, इसे ‘श्वेत विद्रोह’ कहा गया, क्लाइव में श्वेत विद्रोह को दबा दिया| दोहरा भत्ता उन्ही सैनिकों को दिया जाता था जो बंगाल और बिहार की सीमा से बाहर काम करते थें| अंततः वारेन हेस्टिंग्स ने द्वैध शासन को ख़त्म कर दिया और बंगाल के अंतिम नबाव मुबारकददौला (1770-75 ई०) को पेंशन देकर बंगाल की सत्ता अपने हाथों में ले ली|
1767 ई० में इंग्लैंड की सरकार ने क्लाइव को ‘लार्ड’ की उपाधि दी|
अन्य तथ्य : –
कोलकत्ता के न्यायाधीस इलिजा इम्पे मुबारकददौला को भूसे से भरे वोतल के रूप में उल्लेखित किया|
के० एम० पन्निकर ने द्वैध शासन को डाकुओं का राज्य कहा|
डोडबेल में द्वैध शासन को अधिकार और उत्तरदायी के बीच तलाक कहा|