फ्रांसीसि शासक लुई-14वें के मंत्री कोलबर्ट की समझ के कारण भारत में फ्रांसीसियों का आगमन संभव हो पाया क्योंकि इसी ने सबसे पहले पूर्वी देशों के साथ व्यापार के बार में सोचा हालाँकि उस समय फ़्रांस में कोई भी सरकारी कंपनियां नहीं थी अतः कोलबर्ट ने ‘कम्पनी द एण्ड’ नामक एक सरकारी कम्पनी बनाई और उसे पूर्वी देशो के साथ व्यापार का अधिकार दिया| यह कम्पनी अपने पहले अभियान में मेडागास्कर जहाँ वह असफल साबित हुई|
भारत में फ्रांसीसियों का आगमन
कम्पनी का दूसरा अभियान 1667 ई० में फ्रेंको कैरो और मर्कारा के नेतृत्व में भारत पहुँचा तथा 1668 ई० में सूरत में अपनी पहली फैक्ट्री लगाईं| मर्कारा ने 1669 ई० में गोलकुंडा के सुल्तान से अधिकार प्राप्त कर दूसरी फ्रेंच फैक्ट्री मसुलीपटनम (1669 ई०) में स्थापित किया|
1672 ई० में फ्रेंच जल सेनापति डेला हे ने मद्रास के संथामी को वलपुर्वक छीन लिया जिस कारण 1672 ई० में गोलकुंडा, अंग्रेज तथा डचों की संयुक्त सेना ने फ्रांसिसियों पर आक्रमण संथामी को मुक्त करा लिया| 1673 ई० में फ्रैंकों मार्टिन ने विलकोंडापुर के सूबेदार शेरखां लोदी से प्रर्दुचुरी नामक गवां प्राप्त किया और 1674 ई० में पांडिचेरी नामक तीसरी फ्रेंच बस्ती बसाई| जिसे 1693 ई० में डचों ने छीन लिया हालाँकि 1697 ई० में हुई ‘रिजविक की सन्धि’ का बाद वापस लौटा दिया|
बंगाल में मुग़ल सूबेदार शाइस्ता खां ने 1674 ई० में फ्रेंचों को कोलकाता में जगह प्रदान किया जहाँ 1690-92 ई० में चंद्रनगर नामक बस्ती बनाई| 1720 ई० में जॉन डुयुमा गवर्नर आया इसके आते ही 1721 ई० में मॉरिशस, 1725 ई० में मालाबार स्थित माहि तथा 1739 ई० में करिकाल को जीता|
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हैदराबाद के निजाम निजामुल मुल्क आसफ जाह कर्नाटक पर अपना अधिकार जताते थे, कर्नाटक के सूबेदार सआदत उल्ला खां अपना अधिकार जताते थे और मराठा अपना अधिकार जताते थे| किन्तु कर्नाटक के सूबेदार सआदत उल्ला खां ने अपनी भतीजे दोस्त अली को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया तो 1741 ई० में मराठों ने कर्नाटक पर हमला कर दोस्त अली की हत्या कर दी और उसके दामाद चंदाशाह को बंदी बना लिया| तथा सआदत उल्ला खां ने अपने आप को आत्मसमर्पण कर दिया|
मराठा जीतने के बाद भी कर्नाटक में किसी को भी शासक के रूप ने नियुक्त नहीं किये तो इसका लाभ उठाकर हैदराबाद के निजाम ने अपनी करीबी अन्वरुद्दीन को वहाँ का नबाव घोषित कर दिया|
1740 ई० में ऑस्ट्रिया में मेरिया सेरना के उत्तराधिकारी को लेकर तथा अमेरिकी उपनिवेश को लेकर अंग्रेजों और फ्रांसिसियों के बीच युद्ध छिड़ गया| अंततः 1760 ई० में अंग्रेजों और फ्रांसिसियों के बीच हुई वांडिवाश के युद्ध में अंग्रेजी सेनापति आयर कूट ने फ्रेंच सेनापति लाली को पराजित किया| इस युद्ध के बाद ही भारत में फ्रांसिसियों की चुनौती समाप्त हो गई|
अन्य तथ्य –
- प्रथम कर्नाटक युद्ध (1746 – 48 ई०)
- द्वितीय कर्नाटक युद्ध (1749 – 54 ई०)
- तृतीये कर्नाटक युद्ध (1757 – 63 ई०)