प्रेमचंद का जीवन परिचय | Munshi Premchand Biography

प्रेमचंद के नाम से प्रसिद्ध धनपत राय श्रीवास्तव हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक थे| इन्होने ने गोदान, सेवादान और गवन जैसे दर्जनों उपन्यास तथा पूस की रात बड़े घर की बेटी और दो बैलों की कथा जैसे सैकड़ों कहानियाँ लिखी| 1918 ई० से 1936 ई० के कालखण्ड को “प्रेमचंद युग” कहा गया| यह वह दौर था, जब देश में कई सामाजिक सुधर आन्दोलन व स्वतंत्रता संग्राम चल रहा था| जिसका स्पस्ट चित्रण लगान, दहेज़, अनमेल विवाह में देखने को मिलाता है|

प्रेमचंद का जीवन परिचय

जन्म31 जुलाई 1880 ई० (लमही, वाराणसी), उत्तर प्रदेश
राष्ट्रीयताभारतीय
व्यवसायअध्यापक, लेखक और पत्रकार
विषयसामाजिक और कृषक जीवन
चर्चित रचनागोदान, कर्मभूमि, रंगभूमि व सेवासदन आदि
विशेषताआदर्शोन्मुख यथार्थवादी (आदर्शवाद व यथार्थवाद)
मृत्यु8 अक्तूबर 1936 ई० (56), वाराणसी, उत्तर प्रदेश

प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 ई० को वाराणसी जिले के लमही नामक गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ| इनकी माता आनंदी देवी और पिता मुंशी अजायबराय लमही में ही मुंशी थे|

जब प्रेमचंद 7 साल के थे तब इनकी माता आनंदी देवी का स्वर्गवास हो गया और इनके पालन पोषण सौतेली माँ ने किया| 15 वर्ष की कम आयु में ही इनका विवाह कर दिया गया| विवाह के एक वर्ष बाद यानी प्रेमचंद जब 16 वर्ष के थे तभी पिता अजायबराय का भी देहांत हो गया| प्रेमचंद का दूसरा विवाह 1906 में विधवा “शिवरानी देवी” के साथ हुई|

शिक्षा व रोजगार

इनकी आरंभिक शिक्षा फारसी में हुई 1919 ई० तक इतिहास में बी. ए. पास करने के बाद शिक्षा विभाग में इस्पेक्टर के पद पर नियुक्ति मिली| 1921 ई० में असहयोग आन्दोलन के दौरान महात्मा गाँधी के आवाहन पर 23 को त्याग पत्र दे दियें और लेखन को ही अपना व्यवसाय बना लियें|

इसी दौरान इन्होने ने सरस्वती प्रेस ख़रीदा जहाँ से समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका का हंस का संपादन और प्रकाशन हुआ| पर लगातार घाटे में रहने के कारण इसे बंद कर दियें और लगभग 3 वर्षों तक फिल्मों में पटकथा लिखने का काम किये पर कुछ खास लाभ नहीं मिला इस कारण दो महीने का वेतन भी छोड़कर बनारस लौट आयें| यहाँ इनका स्वस्थ लगातार बिगड़ता गया और लम्बी बीमारी के बाद 8 अक्बटूर 1936 ई० को ‘कलम के सिपाही’ का निधन हो गया|

मुंशी प्रेमचंद जी का साहित्यिक जीवन

प्रेमचंद का साहित्यिक जीवन 1901 ई० से ही आरम्भ हो गया आराम्भ में नवाब राय के नाम से उर्दू में लिखते थे हालाँकि इसकी पहली रचना प्रकाशित नहीं हुई| वर्ष 1908 में पहली कहानी संग्रह “सोजे-बतन” प्रकाशित हुई जो देश प्रेम भी भावना से ओतप्रोत थी इस कारण अंग्रेजों ने इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया और इसकी प्रतिलिपियाँ जब्त कर ली गई साथ ही भविष्य में लेखन ना करने की भी चेतावनी दी| देशभक्ति की भवना रखने वाले प्रेमचंद, नबाव राय के बजाय की जगह प्रेमचंद के नाम से लिखने लगें| “बड़े घर की बेटी” प्रेमचंद के नाम से प्रकाशित होनेवाली पहली कहानी रही| 1918 ई० में प्रकाशित उपन्यास “सेवासदन” इतना लोकप्रिय हुआ की प्रेमचंद उर्दू से हिंदी का कथाकार बन गायें|

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *