कर्नाटक युद्ध | Karnatak yudh

कर्नाटक युद्ध की शुरुआत यूरोप में हुए उतराधिकारी युद्ध का विस्तार था, जोकि यूरोपीय की दो बड़ी शक्ति अंग्रेज और फ्रेंच के बीच संघर्ष का कारण बना क्योंकि ये दोनों शक्ति भारत में भी व्यापार करती थी अतः कर्नाटक युद्ध दोनों के इस संघर्ष का परिणाम था| कर्नाटक युद्ध की शुरुआत व अंत दोनों यूरोप में हुए, कर्नाटक युद्ध के दौरान ही अंग्रेजों और फ्रांसिसियों के बीच हुए ‘वांडीवाश’ का युद्ध, में भारत में फ्रांसिसियों का पतन हो गया|

कर्नाटक युद्ध की शुरुआत

कर्नाटक का प्रथम युद्ध ऑस्ट्रिया के उत्तराधिकारी युद्ध का विस्तार था, दरअसल ऑस्ट्रिया के शासक चार्ल्स-6 को केवल पुत्री थी कोई भी पुत्र नहीं था और नियमानुसार पुत्री शासिका नहीं बना सकती थी, इसलिए चार्ल्स-6 शासिका बनाने के लिए एक अध्यादेश लाया जिसे ‘प्रग्मैटीक सैन्सन’ कहा जाता है इसके तहत अब शासिका बन सकती थी जिसका आस-पास के राजाओं  ने विरोध किया|

ऑस्ट्रिया जोकि एक प्रमुख व्यापारिक केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध था. इसे अपने अधीन करने के लिए अंग्रेजों और फ्रेंचों के बीच संघर्ष हुई, कर्नाटक का प्रथम युद्ध मूल रूप से इसी संघर्ष का परिणाम था| ऑस्ट्रिया की सैन्य व्यवस्था विखरी हुई थी. जिस पर इतिहासकारों के कहा की चार्ल्स-6 अध्यादेश की वजाय अपने सैन्य व्यवस्था को मजबूत करते तो ज्यादा अच्छा होता|

प्रथम कर्नाटक युद्ध (1746 से 48 ई०)

अंग्रेज कैप्टन बनेट ने फ़्रांसिसी जहाज पर कब्ज़ा कर लिया तो, फ्रेंच गवर्नर डुप्ले ने मॉरिशस (पोर्ट लुईस) के प्रेंच गवर्नर ला बुर्दने के सहयोग से फ्रांसिसियों ने मद्रास को अंग्रेजों से छीन लिया| कर्नाटक के नबाव अनबरुद्दीन के पुत्र महफूज खां ने मद्रास पर अधिकार करने के लिए मद्रास पर आक्रमण कर दिया लेकिन फ्रेंच कैप्टन पैराडाइज ने इसे हरा दिया|1747 ई० में हुए इस युद्ध को ‘सेंट थोमे’ का युद्ध के तथा अडयार नदी के किनारे लड़ें जाने के कारण अडयार का युद्ध के नाम से भी जाना जाता है|

1748 ई० में फ्रेंचों ने अंग्रेज वस्ती फोर्ट सेंट डेविस तथा अंग्रेजों ने फ्रेंच वस्ती पाण्डिचेरी का अधिकार करने का असफल प्रयास किया| 1748 ई० में अंग्रेजों और फ्रेंचों के बीच ‘ऑक्स ला सैपेल’ की सन्धि हुई, तब जाकर यूरोप में उत्तराधिकारी का युद्ध तथा भारत में प्रथम कर्नाटक का युद्ध समाप्त हुआ| सन्धि के तहत फ्रेंचों ने मद्रास को अंग्रेजों को वापस लौटा दिया बदले में अंग्रेजों ने फ्रेंचों को उत्तरी अमेरिका के लुईस वर्ग को दिया|

कर्णाटक का दूसरा युद्ध (1749 से 54 ई०)

यह भारत के हैदराबाद तथा कर्नाटक में हुए उत्तराधिकारी संघर्ष का परिणाम था, दरअसल हैदराबाद के निजामुलमुल्क (आसफ जाह) के मृत्यु के बाद नासिर जंग निजाम बना किन्तु इसके भतीजे मुजफ्फर जंग निजाम बनाने के लिए संघर्ष करने लगा| वहीँ कर्नाटक में चंदा साहब उस समय के नबाव अनवरुद्दीन को हटाकर खुद कर्नाटक का नबाव बनाने के लिए संघर्ष करने लगा, यही संघर्ष कर्नाटक के द्वितीय युद्ध का कारण बना|

मुजफ्फर जंग जोकि हैदराबाद का निजाम बनना चाहता था, और चंदा साहब जोकि कर्नाटक का नबाव बनना चाहता था. इन दोनों को फ्रेंसिसियों ने सहयोग दिया और तीनों की संयुक्त शक्ति से 1749 ई० में हुए अम्बर के युद्ध के अनबरुद्दीन की हत्या कर चाँद साहब कर्नाटक का नबाव तथा 1750 ई० में कड्डपा के नबाव ने नासिर जंग की हत्या कर दी और मुजफ्फर जंग हैदराबाद का निजाम बना| नासिर जंग हैदराबाद बाद का निजाम बना तो फ्रेंच गवर्नर डुप्ले को 20 लाख रुपये, जागीरें साथ ही जफ़र जंग की उपाधि दी|

मुजफ्फर जंग के ऊपर आये खतरे के कारण फ्रेंच डुप्ले ने बुस्सी के नेतृत्व के सहायता के लिए सेना भेजी फिर भी 13 फरवरी 1751 ई० में कर्नूल के नबाव ने मुजफ्फर जंग की हत्या कर दी अतः बुस्सी ने पुत्र सलाबत खां को निजाम बनाया गया|

कर्नाटक

अनबरुद्दीन के पुत्र मुहम्मद अली ने अंग्रेजों से सहायता मांगी और त्रिचनापल्ली में शरण ले ली अतः कार्रवाई के लिए 1751 ई० फ्रेंचों तथा चंदा साहब ने त्रिचनापल्ली को घेर लिया| राबर्ट कलाइब (अंग्रेज) के सुझाब पर इस दबाव को कम करने के लिए कर्नाटक की राजधानी अर्काट को घेर लिया| अर्काट की सुरक्षा के लियी चंदा साहब ने पुत्र रजा खां को भेजा जोकि अर्काट में भी राबर्ट क्लाइब को भी घेर लिया किन्तु लॉरेंस के सहयोग से अंग्रेज जीत गए| अंततः पाण्डिचेरी की सन्धि पर कर्नाटक का दूसरा युद्ध समाप्त हुआ| हार के बाद चंदा साहब तंजौर चले गए जहाँ उनकी हत्या कर दी गई और मुहम्मद अली कर्नाटक के नबाव बने| हार के बाद डुप्ले की जगह गोड़ेहू गवर्नर बनाकर भारत भेजा गया|

कर्नाटक का तीसरा युद्ध (23 मार्च 1757 से 63 ई०)

तीसरे कर्नाटक युद्ध के कई कारण थे|

  • रावर्ट क्लाइब और एडमिरल वाटसन द्वारा बंगाल के चन्द्रनगर पर अधिकार
  • यूरोप में ब्रिटेन और फ़्रांस के मध्य चल रहे सप्त वर्षीय युद्ध (1756 से 63 ई०)

अंग्रेजों द्वारा 1757 ई० में हुए प्लासी के युद्ध जीतने के बाद बंगाल के संसाधन से फ्रेंसिसियों का मुकाबला किया व पराजित किया| 1760 ई० अंग्रेजों और फ्रेंसिसियों के मध्य हुए सुप्रसिद्ध ‘वांडीवाश’ के युद्ध में फ्रांसिसियों को पराजित किया| हार के बाद फ़्रांसिसी सेनायों के नेतृत्वकर्ता बुस्सी को बंदी बना लिया गया और काउण्ट लाली भाग कर पाण्डिचेरी चला गया|

‘वांडीवाश’ युद्ध में अंग्रेजों का नेतृत्व सेनापति सर आयर कूट तथा फ्रेंसिसियों का नेतृत्व सेनापति काउण्ट लाली (लैली) ने किया था, इसी युद्ध में भारत में फ्रांसिसियों के भाग्य का निर्णय हुआ| फ्रांसिसियों की हार पर मॉलेसन ने कहा की फ्रेंच गवर्नर मार्टिन, ड्यूमा एवं डुप्ले ने भारत में जिस शक्तिशाली ईमारत खड़ा करने में योगदान दिया, इस युद्ध ने मिट्टी में मिला दी|

1761 ई० में लाली ने अंग्रेजों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया बाद में फ़्रांसिसी सेना ने मुकदमा चलाकर लाली (लैली) को फांसी दे दी| 1761 ई० में हीं अंग्रेजों ने पाण्डिचेरी पर भी अधिकार कर लिया लेकिन 1763 ई० में हुए ‘पेरिस की सन्धि’ के बाद यूरोप में चल रहे सप्त वर्षीय युद्ध तथा भारत में चल रहे कर्नाटक के तीसरे युद्ध समाप्त हो गया| सन्धि के तहत अंग्रेज फ्रांसिसियों के पाण्डिचेरी व अन्य प्रदेश को वापस लौटा दिए किन्तु इसे किलेबंदी नहीं कर सकते थें| अंततः फ़्रांस के सम्राट लुई 15वें ने 1771 ई० में फ़्रांसिसी व्यापारिक कम्पनी को ही समाप्त कर दिया|

फ्रांसिसियों के असफलता के कारण

  • अंग्रेजों द्वारा बंगाल में विजय से प्राप्त संसाधन|
  • फ़्रांसिसी कम्पनी पर सरकार का अत्याधिक नियंत्रण था|
  • समय पर फ़्रांस की सम्राट ने वित्तय व सैनिक सहायता नहीं दी|
  • अंग्रेजों की तुलना में कमजोर नौसेना|
  • फ़्रांसिसी थल सेना व नौसेना में आपसी मतभेद|
अन्य तथ्य
  • 1758 ई० में विशाखापत्तनम में हुए चंदुर्थी के युद्ध में फ्रांसिसियों को पराजित किया|
  • 1761 ई० में काउण्ट लाली (लैली) अंग्रेजों से मद्रास को जीतने का असफल प्रयास किया|

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